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    Sondag 12 Mei 2019

    ये एकतरफा प्यार है...

    अंधेरे में घड़ी दिखाई नहीं दे रही थी पर उसके टिक-टिक करने की आदत बता रही थी कि समय अभी ठहरा नहीं है। अंधेरे में झांकता समय भी राजीव को कह रहा था कि सो जा रात के 2 बज गए हैं सुबह कॉलेज नहीं जाना क्या। ...
    अंधेरे में घड़ी दिखाई नहीं दे रही थी पर उसके टिक-टिक करने की आदत बता रही थी कि समय अभी ठहरा नहीं है। अंधेरे में झांकता समय भी राजीव को कह रहा था कि सो जा रात के 2 बज गए हैं सुबह कॉलेज नहीं जाना क्या। पर वो भी क्या करे ये उम्र ही ऐसी है कि अक्सर नींद उड़ जाया करती है। राजीव के पापा सरकारी डॉक्टर हैं, उनका ट्रांसफर इसी साल जयपुर हुआ था। इसलिए मास्टर्स की पढ़ाई के लिए वो भी उनके साथ शहर चला आया और साथ ही ले आया अपने साथ कुछ मीठी यादों का पिटारा। राजीव 22 साला मजबूत कद-काठी का सांवला लड़का है, बीकॉम की पढ़ाई और खेल दोनों में अव्वल रहने वाला छात्र है। पर इन सब खास बातों के अलावा एक और बात है जो राजीव का एक अलग ही परिचय करवाती है। वो है राजीव की मासूमियत, राजीव अंतर्मुखी है। हर बात को अपने भीतर दबाकर रखना उसका शग़ल है। भले ही कितनी ही बड़ी समस्या हो, वह तब तक किसी के सामने अपने राज नहीं खोलता जब तक वह खुद उससे लड़कर थक-हार न जाए। मग़र रात 2 बजे तक उसके इस जागरण के पीछे कोई परेशानी नहीं, जबकी किसी के खूबसूरत ख्यालों की बारीश में देर तक गोते लगाने की उसकी चाहत थी।
    दरअसल आज राजीव अपने कॉलेज गया था जहां उसने कुछ ऐसा देखा था, जिसे वह अकसर खूबसूरत ख्वाब कहा करता था। उसने आज अपने कॉलेज में एक चेहरा देखा, बिल्कुल वैसे ही नैन-नक्श और वही हाव-भाव, जैसे मेघा ही आकर उसके सामने खड़ी हो गई हो। मेघा, ये नाम था उस लड़की का जो राजीव को पहली नजर में ही भा गई थी। राजीव और मेघा की पहली मुलाकात तब हुई जब मेघा अपनी मां के साथ राजीव के घर आई थी। आखिर वे अजमेर में राजीव के नए पड़ोसी थे और यह जानना उनका हक था की उनके पड़ोसी कैसे और कौन हैं। दोपहर के समय पढ़ाई के दरम्यान पानी पीने रसोई में जाने के लिये राजीव जब अपने स्टडी रूम से निकल कर हॉल में दाखिल हुआ तब उसका ध्यान बैठक से आती हुई दो जोड़ी अजनबी आवाजों पर रूका। कुछ और नहीं तब भी वह उस आवाज से परिचय पाने का मोहताज हो गया था। वह बैठक के पर्दे को सरका कर अंदर चला गया। अंदर राजीव की मम्मी, मेघा और मेघा की मम्मी से बातचीत कर रही थी। राजीव को वहां आया देख मम्मी ने मेहमानों से अपने लाड़ले का परिचय करवाया। इस दौरान राजीव दिखने में सामान्य मगर शानदार कद, रंग सांवला, कमर तक लंबे बाल और तहज़ीब की चाश्नी में लपेटी काली आंखों के सुरमयी जादू के साथ साथ शहद सी मीठी जुबान से चहकती मेघा को देखकर खो ही गया। जितनी देर वो वहां खड़ा रहा उतनी देर ही वो नजरें चुराकर मेघा को देखता रहा था। शायद यही बात मेघा को औरों से अलग कर देता है। मेघा के बात करने का तरीका, मुस्कुराना, प्रश्न करना और हर एक बात पर आश्चर्य करना। राजीव ये सब चोर नजरों से देख रहा था मगर इन सब के बीच मेघा ने भी यह नोटिस कर लिया कि राजीव चोरी-छिपे एकटक उसे देखे जा रहा है। आज रात उसकी याद आने पर उसे इस रतजगे को विवश होना पड़ा। राजीव भले ही अजमेर छोड़कर जयपुर आ गया हो मगर वह अपने साथ मेघा की कई सारी यादें साथ ले आया था। इस पहली मुलाकात के बाद से ही उसने राजीव के दिल के एक कोने में घर कर लिया था। आज अपने कॉलेज में उस अजनबी लड़की को देखकर राजीव को मेघा की याद फिर से आने लगी।
    मेघा के पिताजी सतीश बाबू बिजली विभाग में सीनियर क्लर्क की पोस्ट पर अजमेर ट्रांसफर होकर आये थे। सतीश बाबू ने राजीव के बिलकुल बगल वाला मकान रेंट पर लिया था, दोनों मकानों की छत एकदम सटी हुई होने के कारण कोई भी एक दूसरे की छत पर आसानी से आ जा सकता है। जिस तरह से राजीव अपनी क्लास में टॉपर था उसी तरह मेघा भी मेधावी छात्रा थी। जब भी मेघा अपनी छत पर टहला करती थी तब राजीव भी छत पर पढ़ने के बहाने से आकर उसे चुपके चुपके देख लिया करता था। जब इन दोनों की नजरें मिलती तो पांच मिनट की हाय—हेलो तीन से चार घंटे की अनाश—शनाप बातों में बदल जाती। फिर इन बेसिरपैर की बातों के सिलसिले का खात्मा तब तक नहीं होता जब तक दोनों में से किसी एक को नीचे बुला नहीं लिया जाता। इस तरह से राजीव के लिये कभी छत पर तो कभी घर के बाहर, कभी अपने घर की बैठक में तो कभी मम्मी को पड़ोस से बुलाने के बहाने से मेघा को देखना या उससे बात करने का दौर शुरू हो गया था।
    आज पूरे चार साल हो गये मेघा का राजीव के पड़ोस में आकर रहने को, मगर अब तक वह राजीव की एक अच्छी दोस्त ही है। उन दोनों में अब तक दोस्ती से आगे बात कभी बढ़ी ही नहीं। हां दोनों की दोस्ती जरूर साल दर साल अच्छी होती गई। मेघा को बाजार से कुछ भी लाना है तो वह बेहिचक राजीव के पास आ जाती है और उसके साथ बाजार जाती है। वहीं पिछले चार सालों में ऐसा वक्त बहुत ही कम आया जब राजीव को मेघा के कमरे में घुसने के लिये इजाजत लेनी पड़ी होगी। सावन के महिने में जब बारीश आती है तो भले ही दोनों अपनी अपनी छतों पर भीग रहें होते हैं मगर जब बारीश खत्म होती है तब दोनों एक ही छत पर मिलते हैं। ये उनका शगल बन गया था। पर फिर भी राजीव अब तक उससे कुछ भी नहीं कह पाया, उसने इसे हमेशा खुद के दिल में उठने वाला एक अल्हड़ जज्बात ही समझा था। वह इसे मेघा के लिये अपना इक तरफा प्यार समझता था। जब राजीव अपने माता—पिताजी के साथ अजमेर से जयपुर के लिये रवाना हो रहा था, तब मेघा पूरे दिन राजीव के साथ रही। वो राजीव को अनेकों हिदायतें दे रही थी, जैसे मुझे रोज फोन करना और मुझे भूलोगे तो नहीं न। राजीव को ये सब बड़ा अजीब लग रहा था कि जाने आज मेघा को ये क्या हो गया है। पर राजीव उस वक्त ज्यादा पागल हो गया जब राजीव निकलने को हुआ और मेघा रो पड़ी। जब राजीव अपने परिवार के साथ सिटी कैब में बैठा तब उसकी नजर मैन गेट पर खड़ी आंसुओं से भीगी आंखों को अपने आंचल से पूछती मेघा पर पड़ी। उसने जब इस तरह से रोती हुई मेघा का बूरा हाल देखा तो अपने एक तरफा इकरार पर एतबार नहीं कर पा रहा था। इधर टैक्सी रवाना हुई और मेघा का गला एक बार फिर भर आया। वो रोने लगी। उधर टैक्सी में राजीव एक सवाल का वजन नहीं संभाल पा रहा था। कि आखिर मेघा क्यों रो रही थी? क्या वो भी राजीव से प्यार करने लगी है। यह सवाल बार बार उसके दिमाग में आये जा रहा था।
    राजीव और मेघा दोनों ही एक दूसरे की आंखों से जब तक ओझल न हुए देखते रहे। अंत में रह गया था शुन्य, वे दोनों उस शुन्य में भी एक दूसरे को ही तलाश रहे थे। ख्यालों में इन्हीं बातों को सोचते सोचते राजीव को कब नींद आ गई उसे भी पता नहीं चला।

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