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    Donderdag 25 April 2019

    अनोखा मिलन - एक सुन्दर कहानी

    आज काम करते -करते कब अँधेरा हो गया पता ही नहीं चला । घड़ी में रात के नौ बज चुके थे, हे... भगवान इतनी देर हो गई ।

    आज फिर से रोशनी की डाँट खानी पड़ेगी, रोशनी उसकी धर्मपत्नी, सर्वगुण सम्पन्न.. सुंदर और एक कुशल गृहणी, उसने कभी कुछ नहीं माँगा । बस थोड़ा सा प्यार और कुछ वक़्त, अपने लिए । तभी वो काम पर से थोड़ा जल्दी आने को कहती है, और देर होने पर नाराज़ हो जाती बस । ....उफ़ इस बिजली को भी अभी जाना था.... दीपक ने बड़बड़ाते हुए, दुकान बढ़ाई, और घर की तरफ दौड़ चला । आज उसकी चाल में कुछ ज्यादा ही तेजी थी, सर्दी का मौसम ऊपर से ये ठंडी हवा... लेकिन चाल में वही तेजी थी । धीरे धीरे कुछ गुनगुनाते हुए..... जल्दी से घर पहुँचने की चाहत ।

    सर्दी की वजह से गाने के बोल कम और दाँतों की किटकिटाने की आवाज़ ज्यादा निकल रही थी मुँहू से ।

    तभी छपाक से रोड लैंप जगमगा उठा,.. ओह शुक्र है, घर पहुँचने से पहले बिजली आ गई । दीपक बुदबुदाया... पता नहीं वो आई होगी या नहीं..,? आएगी क्यों नहीं... उसके भाई की शादी है... जरूर आई होगी, इसी सोच में वो चले जा रहा था ।

    ज्योति..... लबो ने धीरे से पुकारा, आँखे शून्य में निहारने लगी, और मन के किसी कोने से उसका अतीत छलकने लगा । दस साल हाँ... उससे बिछड़े हुए हो गए.... जैसे कल ही की बात हो, जब इशारे से ज्योति ने प्यार का इज़हार किया था । वो खुलकर नहीं कह पाई... शायद उसकी शर्म, लाज इसकी इजाज़त नहीं दे रही थी । मगर उसकी आँखों में दीपक के लिए जो प्यार था... वो दीपक को भी साफ दिखाई दे रहा था । पर वो भी कभी कह ना सका ।

    ज्योति का भाई देव, दीपक का दोस्त था । देव से मिलने के बहाने वो हररोज उनके घर जाता था । दीपक को देखते ही ज्योति का चेहरा खिल उठता था, होटो पर मुस्कान और आँखों में अपने प्रेमी के दीदार की चमक होती थी ।

    कुछ ऐसा ही हाल दीपक का भी था । उसका मन भी ज्योति से मिलने को मचलता रहता, हर पल उसके बारे में ही सोचता, उसका हृदय ज्योति से मिलने को तड़पता रहता ।

    एक अद्बुध प्रेम था आपस में, मगर दोनों एक दूसरे को कह ना सके । क्या कहे....?प्यार के वो तीन शब्द आई लव यू... सिर्फ कह देने से प्यार नहीं हो जाता, प्यार एक खूबसूरत अहसास है, जो आँखों से दिखाई नहीं देता । उसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है, और उसके लिए प्यार से भरा हृदय चाहिए, जो अपने प्रेमी की तड़प को समझ सके । दोनों का यही हाल था । रोज मिलते -बिछड़ते, और फिर मिलने को तड़पते । पर कह ना सके ।

    वक़्त बीतता गया... और एक दिन ऐसा भी आया, जब ज्योति उसे छोड़ कर चली गई, उसकी शादी हो गई, एक भरपूर सम्पन्न परिवार मिला था उसको । चलो इस बात से वो संतुष्ट था की वो खुश रहेगी । हमेशा जब भी ईश्वर की ईबादत की, उसकी ख़ुशी ही तो मांगी थी ।

    खैर... उसके जाने के बाद दीपक ने अपना ध्यान काम पर लगा दिया । ये भी ज्योति की ही इच्छा थी, की वो जिंदगी में आगे बढ़े ।

    वक़्त बीता.. ... दीपक की भी शादी हो गई, उसका हँसता खेलता परिवार है, परन्तु आज भी उसके मन में एक सवाल है, क्या वो भी मुझे याद करती है ।

    उधेड़बुन में वो घर पहुंचा, घर के सामने कुछ औरतें झुण्ड बनाए खड़ी थी । करीब जाने पर पता चला की ये देव के घर जा रही है, देव की शादी है ना... आज लेडीज़ संगीत का प्रोग्राम है उनके घर पर, देव की बुआ, चाची और पड़ोस की सारी औरतें वहीं जा रही है । मगर.... दीपक की नज़र इस भीड़ में किसी को तलाश रही है,पर वो उसको दिखाई न दी.... पूरी भीड़ का मुआयना करने के बाद चेहरे पर उदासी छा गई, एकदम से मायूस हो गया ।

    तो क्या वो नहीं आई, क्या उसको एक नज़र देखने की हसरत अधूरी रह जायगी...कितना इंतजार किया था, इस दिन के लिए... सोचते हुए भारी मन से... घर के अंदर कदम रखने ही वाला था कि तभी.... ...

    दीपू..... एक चिरपरिचित आवाज़ ने उसके कदमों को रोक दिया, इसके साथ ही उसके ज़ेहन में एक चेहरा उभरा.... ज्योति... हाँ वही तो बुलाती थी इस नाम से, मुड़कर देखा तो.. ज्योति और उसकी चचेरी बहन गली में आती हुई दिखाई दी,ज्योति को देखते ही..बस देखता ही रहा, मन में अनेक विचारो का आवागमन.... इतने में वो पास आ गई, उसकी आँखों में कितने ही सवाल थे, पर वो भी कुछ ना पूछ सकी, बस देखती रही दीपक कि आँखों में । ज्योति.... घर चलो.. जल्दी.. तभी उसकी चाची का स्वर कानो में पड़ा,

    अभी आ रही हूँ..... कह कर पूजा (चचेरी बहन )से बोली तुम चलो मैं आती हूँ । पूजा चली गई...

    गली में सन्नाटा.. नितांत सूनापन जैसे नियति ने ये पल निर्धारित किया हो दो बिछड़े अनकहे प्रेमियों के लिए, दोनों एक दूजे को देखे जा रहें हैं निरंतर.... बिना कुछ बोले.. जैसे सब समझ लिया, जान लिया एक दूसरे के बारे में, बिना कुछ कहे...,

    कैसी हो..... ?दीपक के होठ फड़फड़ाए.... बस इतना ही बोल पाया, बड़ी कठिनाई से...... ।

    कैसी हूँ.. ?कैसी भी रहूँ... तुम्हें क्या ?जीऊँ या मरूं, ज्योति का रूंठा हुआ स्वर....., हाँ रूठने का हक है उसको.... झगड़ पड़े वो हमसे हाल पूछने पर ही, जैसे ये भी हमने कोई गुनाह कर दिया।

    पिछले दस सालों में एक बार भी ना मिले, ना बात हुई... यहां तक कि फोन भी नहीं किया.. एक बार भी नहीं... करता भी कैसे, फोन कोई और उठा लेता तो... क्या कहता.. मैं कौन हूँ,... मेरा क्या रिस्ता है उससे... ?उसके ससुराल वाले उसके बारे में क्या सोचते.. ?..उसके चरित्र पर शक करते... । बस यही सोचकर कुछ नहीं कर सका । दीपू दस सालों में तुम्हें मेरी बिलकुल याद नहीं आई...आवाज़ में कम्पन था।

    कहते हुए ज्योति ने दीपक के गाल पर प्यार से हाथ फेरा, उसके हाथ के स्पर्श से दीपू को चेत हुआ तो,.. क्या देखता है ज्योति के आँखों से अश्रुधारा बह रही है । एक -एक मोती गालों से लुढ़ककर उसका आँचल भिगो रहें थे।

    दीपू अपने गाल पर उसके हाथ की छुअन से भाव विभोर हो उठा,.. ज्योति के आँसू अपने हाथ से पूछते हुए.... पगली.. याद तो उसे किया जाता है... जिसको कभी भुलाया हो,... तुम मेरे दिल और दिमाग में हो,... तुम मेरी हर साँस में हो, तुम मेरी ख़ुशी हो और मेरी जिंदगी का निष्कपट प्यार हो तुम और कहते -कहते गला भर आया... आँखो से आँसुओ की मूसलाधार बारिश.... जिसकी बाढ़ में सारी भावनाएं बाहर आ गई, तुम्हें कैसे बताऊँ... तेरे जाने के बाद कितना तड़पा हूँ मैं... कैसे मर -मर के जिया हूँ।

    ज्योति थोड़ा करीब आकर... इतना प्यार करते हो मुझसे, दीपक ने रोते हुए बस हाँ में सिर हिला दिया..., फिर.. कभी कहा क्यों नहीं.. कहते हुए ज्योति ने बनावटी गुस्सा करते हुए, एक मुक्का उसकी छाती पर मारा । फफ़क कर रोते हुए दीपू से लिपट गई,....दीपू ने उसे आगोश में ले लिया, दोनों रोते रहें... कितनी देर तक.. कुछ पता नहीं । ये एक अनोखा मिलन था... दस साल की विरह के बाद का मिलन, दो सच्चे प्रेमियों का मिलन। आज उन्हें समाज का कोई डर नहीं था ।

    कुछ मन हल्का हुआ.. अब मुझे जाना होगा दीपू... कहते हुए ज्योति उससे अलग हुई, फिर न जाने कब मिलना होगा, इसलिए मैं तुम्हारी यादें लेकर जा रहीहूँ । और मैं... मैं कैसे जीऊंगा.. तुम्हारे बिना, दीपक ने रुंधे गले से कहा।

    जीना तो होगा दीपू... हम हमेशा एक दूजे को प्यार करते रहेंगे, निस्वार्थ.... निश्छल प्रेम । ज्योति ने उसे समझाते हुए कहा... देखो दीपू अब हमारी राहें अलग है । मैं अपनी निशानी तम्हे दे कर जा रही हूँ... कहते हुए अपनी कलाई से चूड़ियां उतार कर दीपू को दे दी, और बोली इन्हे रोशनी को देना... जब वो इन चूड़ियों को पहनेगी तुम उसकी सूरत में मुझे पाओगे । वादा करो तुम रोशनी को मुझ से भी ज्यादा प्यार करोगे । मैं तुम्हें, रोशनी को सौंप कर जा रही हूँ, वादा करो तुम हमेशा उसे खुश रखोगे ।

    मेरा वादा है.... उसे सारी खुशियाँ दूँगा....

    अच्छा अब मैं चलती हूँ..... ज्योति जाने लगी.... दोनों की आंखों में विरह के आँसू उमड़ पड़े, वो बोझिल मनसे एक एक कदम बढ़ा रही है, कुछ दूर जाकर मुड़कर देखती है... दीपक खड़ा है रोते हुए, वो इसारा करती है चुप होने का.... फिर जाने के लिए आगे बढ़ती है, और अँधेरी गली में लुप्त हो जाती है, वो चली गई, दीपू वहीं खड़ा है आँसू बहाते हुए ।

    मगर वहाँ कोई और भी है जिसकी आँखे नम है... बहुत मुश्किल से आँसुओ को रोके हुए, दरवाजे के पीछे रोशनी खड़ी है..... वो साक्षी है इस अनोखे और अनकहे प्यार की ।

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